
सबका कल्याण करने वाली प्रकृति की जय
[1]. यह शब्द AUSTROASIAN language family का है..तो इसका अर्थ उसी “ऑस्ट्रो एशियन भाषा परिवार” में ढूँढना संभव है.
[2]. Indo Aryan language family की भाषा “संस्कृत,हिन्दी,राजस्थानी,गुजराती” में इस शब्द का अर्थ ढूंढना मूर्खता तो है ही सही….दिशा भटकाने का षड्यंत्र भी है.
[3]. छोटा नागपुर परिक्षैत्र (प.बंगाल, बिहार, झारखंड,छ.ग.,उड़ीसा ) की “संथाली,मुंडारी,कुडुख,हो” आदि भाषाओं के “भाषाई…सांस्कृतिक… भौगोलिक…सामाजिक”…इलाके का गहन अध्ययन करके ही इस शब्द की व्याख्या करनी चाहिए….यदि आप हिन्दी भाषा के आधार पर इसका अर्थ निकाल रहे हो तो स्वयं भी मूर्ख बन रहे हो…दूसरों को भी अपने जैसा मूर्ख बना रहे हो.
[4]. आदिवासी “प्रकृति” को धर्मेश,सिंगबोंगा,मरांग बुरु आदि कई नामों से पूजा करते हैं…..पूजा विधि विधान में उस “प्रकृति की सृजनहार अनंत शक्ति” को….अपनी भावना,विश्वास,श्रद्धा,मान्यता के अनुसार धन्यवाद देने के लिए…जोहार…शब्द का उद्बोधन करता है.
[5]. चूँकि प्रकृति का हिस्सा… वनस्पति हैं,जीव जंतु हैं,पशु पक्षी हैं,जलचर थलचर नभचर हैं,सूर्य चंद्र तारे हैं,जमीन आसमान हैं,नदियाँ पहाड़ सागर हैं,कीड़े मकोडे हैं,रेंगने वाले…दौड़ने वाले…उड़ने वाले सब के सब सजीव हैं,निर्जीव वस्तुएँ भी प्रकृति का अटूट…अनमोल…अभिन्न हिस्सा है…इसलिए तमाम “सजीव…निर्जीव प्रकृति के अंगों की जय हैं….जोहार”….

मतलब “सबका कल्याण करने वाली प्रकृति की जय” हैं…जोहार.
[6]. संक्षेप में कहें तो…”धर्म पूर्वी संस्कृति” के पूजा विधि विधान के “पंच परमेश्वर…कुदरत” का आदर सत्कार आदिवासी परंपरा अनुसार करने का हिस्सा है….जोहार.

[7]. मरने के बाद इंसान “पंच तत्व में विलीन” होता है…इसलिए दक्षिणी राजस्थान के “भील” आदिवासी “1 1 रमे,1 2 रमे” के दिन सब सगा संबंधी…गाँव(Village) वाले…पाल(Republic) के संगी साथी….मिलजुल कर…पूर्व दिशा की तरफ मुँह करके…लाइन में लग कर….चावल (Rice) हाथ में लेकर..एक साथ “जोहार” बोलकर मरे हुए मनुष्य को अंतिम विदाई देते हैं…

मतलब मन्नारे महिला पुरुष को प्रकृति को सभी मिलकर समर्पित करते हैं…कुदरत से दुआ करते हैं कि इस इंसान को अपने में समाहित कर लें…क्योंकि यह जीव आपका ही अंश था..इस परंपरा के बाद वह इंसान भी ईश्वर तुल्य विश्वास,श्रद्धा,पूजा योग्य हो जाता है…जिससे प्रेरणा ली जा सकें.ध्यान रहे…”भीली बोली भाषा” में “मुंडारी भाषा” के शब्द हैं…जिसमें एक शब्द…जोहार हैं.
[8]. दक्षिणी राजस्थान के भील आदिवासी दिवाली के बाद नया साल मनाते हैं…इस नये साल की मुबारक.. दुआ.. सलाम..उद्बोधन भी कुछ वर्ष पहले “जोहार” ही था…मनुवाद,ब्राह्मणवाद के अथक प्रयास से कुछ वर्ष पहले यह समाप्त हुआ है…मगर बीज स्वरूप आज भी जिंदा है.
[9]. कुछ वर्ष पूर्व जब गाँव के लोग जंगल में पत्तियाँ…घास…पेड़ काटने जाते थे तो “वन देवी”की आराधना में कुछ दारु की बूँदों के छींटे डालकर “जोहार” बोल कर…वन संपदा अपने उपभोग के लिए घर लाते थे…यह परंपरा दुश्मन समुदाय के षड्यंत्र के कारण आज विलुप्त होने के कगार पर है.
[1 0]. कुछ वर्ष पूर्व हमारे लोग नदी नालों में स्नान करने जाते थे…तब… “जोहार….जोहार” बोल कर स्नान करते थे….पानी को शरीर की सफाई में योगदान देने के लिए धन्यवाद देते थे…नदी नाले की आराधना का भी दर्शन था…कोटडा(उदयपुर) इलाके में यह सब जिंदा देखा जा सकता है.
इस तरह “जोहार”का अर्थ हुआ…”सबका कल्याण करने वाली प्रकृति की जय” अर्थात “प्रकृति के प्रति संपूर्ण समर्पण का भाव ही जोहार है”..
यह हिन्दू धर्म,इस्लाम धर्म,ईसाई धर्म,सिक्ख धर्म,बौद्ध धर्म,जैन धर्म,पारसी धर्म की विचारधारा से कई गुना “उच्च क्वालिटी के जीवन दर्शन” की सोच का पर्याय है…
यह बात केवल आदिवासी ही समझ सकता है…कोई गैर आदिवासी D.N.A. नहीं….
जय जोहार,जय आदिवासी,जय भील प्रदेश
भँवरलाल परमार,
सी.सी.सी.सदस्य,
भील ऑटोनोमस कौंसिल