
राजस्थान के कोटा जिला से वर्तमान में दक्षिण पश्चिम में 5 मील की दूरी पर भीलों की राजधानी थी,
जो अकेलगढ़ के नाम से जानी जाती थी, इसके आसपास भीलो का राज्य था अकेलगढ़ जगह से दक्षिण-पूर्व में मुकंदरा पर्वत की अरावली पर्वत श्रेणियों की बहुत बड़ी श्रंखला है, जहां पर भील जाति के लोग मनोहर थाने तक बहुत बड़े क्षेत्र में फैले हुए थे, भील जाति के लोगों ने पहाड़ों पर प्राकृतिक छटा में अपने छोटे-छोटे गण राज्यों का निवास बना रखा था । यह भील जाति की संस्कृति थी जिसको उन्होंने कायम कर रखा था।
अकेलगढ़ के खंडहरों से ऐसा प्रतीत होता है कि भील जाति के लोग साधारण छोटे-छोटे किले बनाकर उनमें रहते थे तथा उस गणराज्य के मालिक का आधिपत्य लगभग 25 मील के क्षेत्र में होता था।
जनश्रुतियों तथा विभिन्न लेखकों के तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि यहां महान प्रतापी वीर पुरुष भैरूलाल कोटिया भील का राज्य स्थापित था।
भैरूलाल कोटिया भील का राज्य 20 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था, जिसकी शासनावधि सन् 1200 से 1264 के लगभग रही है, कोटिया भील प्रकृति पूजक थे तथा अपने आदि देव महादेव शंकर के उपासक थे।
उन्होंने शिव के नाम पर नीलकंठ महादेव के मंदिर की स्थापना की, जो एक ऊंचे टीले पर स्थापित था।
भीलो का उस समय अपने आप में दबदबा था। भैरूलाल कोटिया नामक भील भी अपने आप में एक शासक था, जो चंबल के किनारे पर और उसके आसपास के क्षेत्र पर फैला हुआ था तथा इस क्षेत्र में जो भी पैदावार होती थी या व्यापार किया जाता था उस पर कोटया द्वारा निश्चित मात्रा में लगान वसूल किया जाता था।
भैरूलाल कोटिया भील के समकालीन बूंदी का शासक उस समय समरसी था,
समरसी, देवी सिंह हाडा का वंशज था, देवी सिंह हाडा बूंदी में राज जमा कर चित्तौड़ आया
और दोबारा कुंवर हरिसिंह से मदद लेकर बूंदी के तमाम छोटे-बड़े गण राज्यो को अपने कब्जे में लिया।
प्रतिवर्ष चित्तौड़ के महाराणा उनकी सेवा में रहने लगा और मेवाड़ केवल दर्जे का सरदार बन गया
इसके दो पुत्र हुए बड़ा हरीराज बंबावदे में देवीसिंह की गद्दी पर बैठा और छोटा समरसी बूंदी का जागीरदार रहा।
समरसी के तीसरे बेटे जैतसी ने कोटिया भील से कोटा छीनने की अपनी योजना बनाई
जो कि चौहान वंश में वंशज थे वह अपने पिता की भांति साम्राज्यवादी, कूटनीतिज्ञ एवं धोखेबाज था।
बूंदी मीणा शासकों से रावदेवा ने धोखे से राज्य पर कब्जा करने के पश्चात हाडा शासकों की साम्राज्य पिपासा दिनोंदिन बढ़ने लगी।
इसी कारण समरसी की कोप दृष्टि अकेलगढ़ के साम्राज्य पर लगी हुई थी। समरसी ने राज्य पिपाशा के अपने सपने को साकार करने की दृष्टि से अकेलगढ़ के शासक भैरूलाल कोटिया भील पर आक्रमण कर दिया।
इसी युद्ध के दौरान 900 भीलों की शहादत हुई तथा इन्हीं के साथ 300 सैनिक हाडा उनके साथ मारे गए।
इसके बावजूद भी समरसी अकेलगढ़ पर अपना अधिकार जमाने में कामयाब नहीं हो पाया समरसी के तृतीय पुत्र जैतसी का विवाह कैथुन के तंवर शासक की पुत्री से हुआ था, कुछ समय पश्चात जैतसी ने अपनी सुसराल कैथून में ठहर कर अकेलगढ़ के शासक को वहां के राज्य से हटाने की और उसको धोखे से मारने की योजना बनाई ।
अपने कपटपूर्ण योजना के अनुसार जेतसी के ससुर की अनुमति एवं सैनिक सहायता से कोटिया भील को धोखे से मारने की चाल चलने लगे। इन धोखेबाजों ने वही चाल चली जो चाल पहले बूंदी के राजा जैता के साथ चली थी, जिसमें जेता मीणा व उसके साथ के सैनिकों को शराब के नशे में मदहोश करके मौत के घाट उतारा था।
उसी तरह राजा जैतसी एक सुरम्य घाटी के अंदर एक चारों तरफ से घिरी हुई एक जगह बनाई और उस जगह को चारों तरफ से बंद कर दिया गया तथा ऊपर से साफ सुथरा दिखाई देने वाली अच्छी जगह बनाई गई तथा उसके नीचे जमीन के अंदर बारूद बिछा दी गई तथा कोटिया भील के साथ मित्रता अपनाए जाने लगी तथा उसको दोस्ती का पैगाम दिखाकर दावत के लिए भील सरदारों के साथ में कोटिया भील को बुलाने का मौका तलाशा गया।
कोटिया भील व उसके सैनिक राजा जैतसी के बहकावे में आ गए तथा दोस्ती का हाथ बढ़ाया
और जैतसी के मध्य पान स्थल पर पहुंच गए जब रात का समय था
चारों तरफ जेतसी के द्वारा दारु शराब का सेवन कराया जा रहा था सबको नशे के चक्र में डालकर और नशे में चूर कर दिया तथा सभी भील योद्धा अपनी सैनिक शक्ति को खो चुके थे और शराब के नशे में पहुंच चुके थे ।
उस समय का फायदा उठाकर जेतसी ने अपने साथियों को चुपके से बारुद में आग लगाने के लिए इशारा किया और बारूद में आग लगा दी गई , जिससे मदहोश रहने वाले काफी भील सरदार उसी रात में जलकर शहीद हो गए सभी भील सरदारों में फिर भी उनका मुखिया कोटिया भील नशे में कम था।
उसको जब इस बात का पता चला तो शेष अपने साथियों के साथ मिलकर जेतसी के साथ युद्ध के मैदान में वही उसके विरुद्ध अपने धनुष बाण उठाए और उसके साथ युद्ध करने लगा। इस युद्ध में जैतसी के पक्ष में सैलारखान नामक पठान कोटिया भील के विरुद्ध युद्ध में खड़ा था तथा कोटया के सामने वह टिक नहीं पाया तथा उसके हाथों मारा गया।
कई जगह लेखकों ने दोहे के माध्यम से कोटिया भील के लिए लिखा भी है
जो इस तरह है।
समर सिंह नरनाह तवहि, चंबल द्रुत उत्तरी।
चंड विरचि चतुरंग सवव तिस्र हंस रन संहरि।
किए निर्भय कैथौन्नी सीसवालिय बड़ोद सह।
रह लावनि रामगढ़ मऊ सांगोद दयो मह।
रक्षक अजेय तहं रखीके महि अधीस पच्छो मुर्त।
पुनि सवर रुक्कि चंबल पुलिन आनि जुरे खिल अकुंरित।
पिक्खिअलप परिकर नृपहि इम खिल भिल्लन आई।
कोटा जंह तंह जंग किए नदी चम्लि नियराई।
बूंदी सन पृतना बहुरि, पहुंची मदीपती पास।
किए निर्भय हय विचि करी नवसत भिल्लन बास।
कोटा जह स्वपल्ली करि, कोटिक नाम किरात।
रहतो सो भजिगो दुरित,गहन दुरावत गात।
संभर के भट तीन सत खंड खंड हुव खेत।
पुर बुंदिय हम समरहु,आयो विजय उपेत।
विक्रय संवत 1321सन 1264 में कोटिया भील वीरगति को प्राप्त हुए
जेतसी ने धोखे से मार कर अकेलगढ़ पर अपना कब्जा जमा लिया और जिस जगह पर युद्ध हुआ वहां पर कोटा नगर बसाया। कोटिया भील ने अपना सिर कटने के पश्चात भी जेतसी के सेनानायक शेलार खां नामक पठान को मौत के घाट उतार दिया। हाडा शासकों ने शेलार खान नामक पठान की स्मृति में कोटा गढ़ पैलेस में सेलारगाजी नामक दरवाजा बनवाया । इसके बाद कोटा परगना बूंदी की जागीर में चला गया ।
कोटिया भील के किले अकेलगढ़ के अवशेष कोटा रावतभाटा बनने वाले सड़क मार्ग पर अधिकांश पत्थर काम में ले लिए गए। कुछ पत्थर अकेलगढ में पानी की टंकी बनने पर काम में ले लिए गए। किले के कुछ अवशेष वर्तमान में मौजूद हैं जिनमें एक समाचार पत्र के संवाददाता तिमिर भास्कर ने कोटिया भील के किले के अवशेषों में एक शिला लेख खोज निकाला है ।
जिसमें कोटिया भील के शासन का उल्लेख है कोटिया भील एक वीर प्रतापी शासक होते हुए भी एक धर्म सहिष्णुता, शासक था।
कोटिया भील को धोखे से मारने के पश्चात उसकी पत्नी ने जेतसी को श्राप दिया कि तुम्हारा वंश कभी नहीं चलेगा क्योंकि तुम एक वीर योद्धा को धोखे से मारा है। इस पर जैतसी ने क्षमा मांगी और श्राप को दूर करने की इच्छा जताई। जिस पर उसकी पत्नी सलाह दी कि यदि आप के द्वारा कोटिया भील की समाधि बनाकर पूजा करें तो मेरा श्राप कम हो सकता है।
वर्तमान कोटा गढ़ oपैलेस में
कोटा का हाडा राजवंश कोटिया की पत्नी को दिए गए वचन को आज भी निभा रहा है
और उसकी पूजा की जाती है कोटिया समाधि के रूप में आज भी मौजूद है।
सिटी पैलेस का नकारखाना गेट जहां कोटया के अवशेष है । वहां एक समाधि बनी हुई है और कोटा का राजवंश आज भी पूजा कर रहा है।
कोटिया भील के अवशेष बचे थे इतिहासकार श्री विजय कृष्ण व्यास के अनुसार उस समय ओकारेश्वर चले गए यदि देखा जाए तो कोटिया भील के पारिवारिक सदस्य ओकारेश्वर की पहाड़ी में आज भी मिल सकते हैं जिससे कि शोध सामग्री का पता लगाया जा सकता है।